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कविता

स्पेशल इफेक्ट

सर्वेंद्र विक्रम


गिनती के शब्द थे संवाद में
और वे भी सुने नहीं गए शोर में

फंदे से उतारकर फोटुएँ खिंच जाने के बाद

वह पड़ा रहेगा या सुकूनभरे सुट्टे लगाएगा
जरूरी सौदे-सुलुफ के साथ घर जाएगा ?
औंधे मुँह लटका रहेगा
खुद ब खुद अंतड़ियाँ समेट सिल लेगा, आँखें मटकाएगा
कोने बैठ करेगा फिर अपनी बारी का इंतजार ?

जो सुराख हो गया है, पुर जाएगा
निकाल लेगा सीने से तलवार
रोक लेगा हाथों पर हर वार ?
धुएँ के बगूले से छलाँग लगाएगा बाहर
भागता चला जाएगा नंगे तारों पर ?

बह बह कर फैल रहा है खून, असली है ?
शिनाख्त की रस्म के बाद शवगृह तो नहीं ले जाया जाएगा ?

जलने की बू है जैसे चमड़ी और बाल
जैसे दीवार पर छापा हुआ फूल
चाभियों का गुच्छा किसी सपने में
आग है या आग का विशेष प्रभाव ?

यह हुनर और ऐसी नायाब सफाई
मालूम तो है सबको जीवन और पर्दे का भेद
साबित हो जाएगा सब का सब नकली है ?


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हिंदी समय में सर्वेंद्र विक्रम की रचनाएँ